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१५० पुण्यपुरुष राज वसुपाल की जय' पुकारता हुआ भीतर आया और बोला
"महाराज की जय हो ! कोई भंडराज अपनी मंडली सहित द्वार पर उपस्थित हुआ है। उसका कहना है कि वह इतने विचित्र प्रकार के स्वाँग और खेल दिखा सकता है कि कभी किसी ने नहीं देखे हों। महाराज की क्या आज्ञा है ?"
कौतूहल मनुष्य-स्वभाव का एक अंग है। उस दिन राजसभा में कोई विशेष कार्य भी नहीं था। सब तरफ सुख-शान्ति थी। अतः राजा वसुपाल ने भी कौतूहल से प्रेरित होकर कहा
"इस भाँडमण्डली को भीतर भेज दो। देखें, ये लोग क्या-क्या तमाशा दिखाते हैं ?" __"जो आज्ञा महाराज !"-कहकर द्वारपाल उल्टे पैर पीछे लौट गया।
अनेक प्रकार के रंगों के विचित्र-विचित्र वेश पहिने हुए तथा सिर से पैर तक नकली, चमकदार आभूषण धारण किये हुए उस भाँड़-मंडली के सदस्य छमछमाहट करते हुए राजसभा के बीच के संगमरमर के चौक में आकर खड़े हो गये। जमीन तक झक-झुककर उन्होंने राजा को सलाम और नमस्कार किया तथा फिर राजा की आज्ञा से उन्होंने अनेक प्रकार के खेल दिखाने आरम्भ किये। उस
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