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________________ पुण्यपुरुष १४६ मुद्राएँ उसने कभी स्वप्न में भी नहीं देखी थीं। उसने हर्ष से विभोर होकर कहा___ "सेठ ! यह काम कल अवश्य हो जायगा । तुम देखना कि हम लोग ऐसा सफल नाटक करेंगे कि लोग देखते ही रह जायगे।" "ठीक है, तो अभी तो मैं चलता हूँ। कल राजसभा में अवश्य पहुँच जाना। भूलना नहीं भला। एक लाख स्वर्ण-मुद्राएँ तुम्हें मिल ही गई समझ लेना।" भंडराज अपनी मंडली सहित नाचता-गाता एक ओर चला गया। धवल सेठ भी अपने शिविर की ओर अन्यमनस्क सा लौट आया। राजसभा भरी हुई थी। राजा वसुपाल अपने आसन पर शोभित हो रहे थे। दाहिनी ओर किसी देवपुरुष की भांति दैदीप्यमान श्रीपाल बैठा हुआ था। मंत्री, अमात्य, सेनापति तथा अन्य अधिकारीगण भी अपने-अपने नियत स्थान पर खड़े अथवा बैठे हुए थे। नगर के अनेक प्रमुख जन भी सभा में उपस्थित थे। __ उसी समय सभाभवन के बाहर कुछ शोर-गुल सुनाई पड़ा। नाना प्रकार के वाद्यों की ध्वनि आ रही थी। यह शोर-गुल क्यों हो रहा है इसका पता लगाने के लिए राजा ने अपने कंचुकी को कहा ही था कि तभी द्वारपाल 'महा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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