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पुण्यपुरुष
वह कितने पुण्य एकत्रित करके आया है कि जहाँ भी वह जाता है उसे ऋद्धि-सिद्धि ही प्राप्त होती है और उसका बाल भी बांका नहीं होता। मैं तो स्वयं ही प्रयत्न करकरके हार गया हूँ।"
"तो फिर उस श्रीपाल का आप क्या करना चाहते हैं सेठ ? जो कुछ भी करना हो सो बता दीजिए। हमें तो अपने पुरस्कार से मतलब है।" ___"देखो भंडराज ! तम ऐसा करो कि कल गाते-बजाते राजसभा में जाओ और राजा को अपने सुन्दर और आश्चर्यजनक खेल से प्रसन्न करो। और फिर ऐसा नाटक करो कि जैसे तुम्हारी दृष्टि अचानक ही श्रीपाल पर पड़ गई हो और तमने उसे पहिचान लिया हो। उसे तुम अपना बेटा बना लेना, कोई उसे भाई, कोई चाचा और जो जी में आये बना लेना। किन्तु इतनी सहजता और सफाई से यह काम होना चाहिए कि किसी को कोई संदेह न हो। राजा भी यही सोचे कि वह वास्तव में तुम्हारा ही बेटा है, अर्थात् एक भाँड़ है । तम अपने उस बेटे को अपने साथ ले जाने की आज्ञा राजा से मांगना ।
"बस, भंडराज ! मेरा इतना ही काम है । आगे मैं देख लूँगा। यह कार्य यदि तुम कुशलता और सफलतापूर्वक कर दोगे तो मैं तुम्हें एक लाख स्वर्णमुद्राएँ दूंगा, समझे? पूरी एक लाख !"
भंडराज के मुंह में पानी भर आया । एक लाख स्वर्ण
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