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पुण्यपुरुष
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"हाँ सेठजी ! ऐसी ही बात है । आज्ञा दें तो आपको ऐसे-ऐसे खेल दिखाऊं जो आपने कभी न देखे हों । हम लोग सारे देश में घूमते हैं, अनेकों कलाएँ जानते हैं .......।"
"बस बस, भंडराज ! देखो, मुझे अभी तुम्हारा खेल नहीं देखना है । फिर देखूंगा और तुम्हें मुँह माँगा पुरस्कार भी दूँगा । मेरा नाम धवल सेठ है। मेरे पास धन-सम्पत्ति की कोई कमी नहीं है । जितना चाहो उतना ही धन तुम्हें दूंगा । किन्तु तुम्हें मेरा एक कार्य करना पड़ेगा | बोलो, करोगे ?"
"अरे सेठ, इधर आपने काम बताया नहीं और उधर हमने उसे पूरा किया नहीं। कहें तो रातोंरात राजकुमारी को गायब कर दें ?" - कहकर चतुर भांड़ ने अपनी बायीं आँख की एक कोर दबाकर अपनी दृष्टि धवल सेठ के चेहरे पर गड़ा दी ।
"नहीं नहीं, भंडराज ! ऐसा कोई काम नहीं करना है । तुम्हें जो काम करना है वह यह है कि राजसभा में राजा के पास एक बहुत ही सुन्दर, बड़ा ही प्रदीप्त पुरुष उनकी दाहिनी ओर बैठता है । उसका नाम है श्रीपाल .... ....\"
" समझ गया, सेठ ! समझ गया । उस श्रीपाल को एकदम गायब कर देना है न ?"
"अरे नहीं भाई ! गायब नहीं करना है । और उसे गायब कर देना कोई हँसी - खेल भी नहीं है । कौन जाने
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