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पुण्यपुरुष
इधर श्रीपाल ने भी धवल सेठ को पहिचान तो लिया ही था, वह उसके पापकर्म को भी जानता था। किन्तु वह बड़ा ही शान्त विचारक, धैर्यवान तथा क्षमाशील था। वह अपने मन में चाहता था कि धवल सेठ अपने कुकर्म का पश्चात्ताप करे, नैतिक जीवन को अपनाए तथा भविष्य में किसी भी अन्य व्यक्ति के साथ दुष्टता का व्यवहार न करे, निर्धनों का शोषण न करे ।
यह सोचकर वह राजसभा में मौन ही रहा । किसी से उसने कुछ भी नहीं कहा । केवल एक राज गुप्तचर को सावधान करके आदेश दिया कि वह समुद्रतट पर धवल सेठ के शिविर पर कड़ी दृष्टि रखे, उसे यात्रा पर आगे रवाना न होने दे तथा दोनों रानियों के कुशलसमाचार उसे लाकर दे।
राजसभा से निकलकर धवलसेठ जब अपने शिविर की ओर जा रहा था तब संयोगवश उसे मार्ग में एक भाँड़ों की मंडली मिली। इन भाँड़ों की आजीविका तरह-तरह के स्वांग रचाकर, भिन्न-भिन्न प्रकार के आकर्षक खेल दिखाकर प्रजा का मनोरंजन करना ही था।
उस मंडली को देखकर धवल सेठ के मस्तिष्क में एक नया ही कुटिल विचार उत्पन्न हुआ। उसने उस भाँड़मंडली के नेता को अपने पास बुलाकर कहा
"देखो भाई भंडराज ! तम तो बड़े कुशल नट हो। देखते-देखते लोगों को चकित कर सकते हो। है न ऐसी ही बात?"
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