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________________ पुण्यपुरुष १४५ "क्यों श्रेष्ठिवर ! आप अचानक कुछ अस्वस्थ दिखाई पड़ रहे हैं । क्या बात है ? क्या अधिक दिन समुद्र- यात्रा करने के कारण आप अस्वस्थ हो गये हैं ? यदि चिकित्सा की आवश्यकता हो तो मैं अपने राजवैद्य को आपकी समुचित चिकित्सा करने हेतु आदेश दूँ ? " किन्तु धवल सेठ की बीमारी तो दूसरी थी । वह कनखियों से श्रीपाल की ओर देख रहा था और थर-थर काँप रहा था । श्रीपाल की मधुर मुस्कुराहट उसे अपनी मौत का पैगाम दिखाई दे रही थी । जैसे-तैसे धवल सेठ ने हाथ जोड़कर राजा से कहा "महाराज ! आपकी कृपा से मुझे कोई रोग नहीं है । कभी-कभी अचानक ही अधिक थकान के कारण मुझे अस्वस्थता का अनुभव होने लगता है, लेकिन कुछ विश्राम और साधारण औषध सेवन से ही मैं ठीक हो जाता हूँ । "अतः राजन् ! अब मुझे आज्ञा दीजिए। मैं अपने शिविर में लौटकर विश्राम करना चाहता हूँ ।" " जैसी आपकी इच्छा, श्रेष्ठिवर ! यदि मेरे योग्य कोई कार्य हो तो निस्संकोच बताइयेगा | अब आप जा सकते हैं ।" राजा से आज्ञा पाकर धवलसेठ राजसभा से जल्दीजल्दी विदा हो गया । वह सोच रहा था कि इसके पूर्व कि श्रीपाल उसका भंडाफोड़ करे, किसी तरह यह कोंकण - तट छोड़कर दूर चला जाना चाहिए । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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