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________________ १४४ पुण्यपुरुष कि कभी न कभी ये दोनों राजकुमारियाँ उसके वश में हो ही जायेंगी । आखिर कब तक ये श्रीपाल की याद में अपने चढ़ते हुए यौवन की उद्दाम पिपासा को वश में रख सकेंगी ? यही विचार करते हुए धवल सेठ ने अपनी यात्रा जारी रखी। उस समय समुद्र में पवन की दिशा दक्षिणमुखी थी । अतः वे सभी यान पवन की ही दिशा में तेजी से चलते हुए एक दिन कोंकण देश के समुद्र तट पर ही आ लगे । धरती को देखकर धवल सेठ ने वहीं लंगर डालने का आदेश दे दिया और वे लोग उस तट पर ठहर गये । आवश्यक विश्रामादि से निवृत्त होकर धवल सेठ बहुत सारी सामग्री लेकर कोंकण नरेश की राजसभा में जा पहुँचा । राजा के चरणों में उसने बहुमूल्य भेंट रखी । राजा प्रसन्न हुआ । किन्तु उसी समय धवल सेठ की दृष्टि राजा के समीप ही बैठे श्रीपाल पर पड़ी और उसे देखकर उसके पैरों तले से धरती खिसक गई । भय के मारे वह काँपने लगा । उसने सोच लिया कि अब तो मौत आ ही गई। यह श्रीपाल अब अवश्य ही सारे तथ्य राजा के समक्ष प्रकट करके उसे फाँसी पर चढ़वा देगा । धवल सेठ भय के मारे काँप रहा था । राजा ने यह देखा और पूछा Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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