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________________ पुण्यपुरुष १४॥ में तूने कोई कुकर्म किया तो स्मरण रखना कि तुझे जीवित नहीं छोडूंगी। तू स्वयं अपनी मौत मारा जायगा।" . इतना कहकर देवी ने उन दोनों रानियों को एक-एक पुष्पहार प्रदान करते हुए कहा___"बेटियो ! इन पुष्पहारों को तुम धारण किये रहना। इससे तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं होगा। तुम्हारे पतिदेव भी तुम्हें आज से बीसवें दिन सुरक्षित तथा सानन्द मिल जावेंगे।" देवी अन्तर्धान हो गई। मदनसेना और मदनमंजूषा को धैर्य बँधा। धवल सेठ मुंह लटकाए, लज्जित होकर अपने यान पर चला गया। - किन्तु जिस प्रकार कुत्ते की पूंछ को कितना ही सीधा करने का प्रयत्न किया जाय वह कभी सीधी होती ही नहीं, उसी प्रकार कामी पुरुषों को सद्बुद्धि भाग्य से ही आती है। इस समय तो धवल सेठ चक्रेश्वरी देवी के प्रभाव से दोनों सतियों का कुछ भी नहीं बिगाड़ सका, किन्तु उसके मन में लालसा अभी बनी हुई ही थी। शास्त्रों में कहा गया है- “कामातुराणां न भयं न लज्जा"-काम से आतुर हो रहे व्यक्ति को न कोई भय ही प्रतीत होता है न उसे लज्जा आती है। क्योंकि वह तो उस समय अन्धा हो जाता है तथा उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता। यही हाल धवल सेठ का था । वह अवसर की तलाश में था। अपने मन में वह लड्डू फोड़ रहा था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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