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पुण्यपुरुष
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तथा स्वयं उन्हें भी अपने चंगुल में फंसाने का प्रयत्न करेगा।
यह सोचकर दोनों रानियाँ सावधान हो गई। . धवल सेठ के मन में तो काम-विकार अब अपनी पराकाष्ठा को पहुँच रहा था। एक-एक दिन उसे पहाड़ के समान प्रतीत होता था । अत: एक दिन वह अवसर देखकर श्रीपाल की दोनों रानियों के पास जा पहुँचा और पहले इधर-उधर की बातें बनाकर फिर सीधे अपने मतलब पर आ गया- "देवियो ! जो संसार में आता है, वह जाता भी है। बड़ा दुःख है कि श्रीपाल महाभाग इस प्रकार से मृत्यु को प्राप्त हुए। किन्तु अब किया ही क्या जा सकता है ? वे लौटकर तो आ नहीं सकते। आप लोग अब निराश्रित हो गई हैं। मैं आपको आश्रय देता हूँ। मेरे पास अटूट धन है। आपको कभी किसी वस्तु की कमी नहीं होने दूंगा । बस, आप लोग श्रीपाल के स्थान पर अब मुझे ग्रहण कर लीजिए।" - इतना सुनकर दोनों रानियों ने अपने कान बन्द कर लिए । इतना ही कहा
"धवल सेठ ! पापकर्म हमेशा सिर पर चढ़कर बोलता है। तुमने पापकर्म किया है, पाप भरे शब्द तुम बोल रहे हो । अब भी समय है तुम चुपचाप चले जाओ और यह कुविचार अपने हृदय से निकाल दो अन्यथा तुम्हें पछताना
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