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१४. पुण्यपुरुष दौड़ो, बचाओ, बचाओ ! श्रीपाल समुद्र में गिर गये हैंकोई उपाय करो। हाय, समुद्र में तूफान आ रहा है और इस स्थल पर भीषण मगरमच्छ भी हैं। अब मेरे प्रिय श्रीपाल की रक्षा कौन करेगा? अरे, कोई उसे बचाओ।"
धवल सेठ की यह चीख-पुकार सुनकर श्रीपाल तथा सेठ के अनेकों सेवक घड़ी भर में वहाँ एकत्रित हो गए। किन्तु उफनते हुए समुद्र में उतरकर श्रीपाल की खोज करना अशक्य समझकर वे सब चुपचाप मुँह लटकाये खड़े रहे। किसी का साहस नहीं था कि वह समुद्र में कूद पड़े और खोज करे। जो व्यक्ति यह दुस्साहस करता उसकी मृत्यु निश्चित थी।
रानियों को जब यह समाचार मिला तब वे दुःख के आवेग से मूच्छित हो गई। अनेक उपचारों के बाद उन्हें होश आया और वे शान्तिपूर्वक विचार करने लगीं। उन्होंने आपस में विचार किया कि उनके पति श्रीपाल पुण्यवान पुरुष हैं, अतः उनका कोई अनिष्ट नहीं हो सकता। अवश्य ही वे इस महासंकट से किसी न किसी प्रकार पार उतर ही जायेगे और फिर से उनका मिलन होगा।
इसके साथ ही उन्होंने यह भी जान लिया कि यह सारा षड्यन्त्र दुष्ट धवल सेठ का ही है। हो न हो उसी ने धोखे से उनके पति को समुद्र में धकेल दिया है और अब वह उनकी अटूट सम्पत्ति का स्वामी बन जाना चाहेगा
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