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पुण्यपुरुष १३६ महाराज वसुपाल ने श्रीपाल की यह इच्छा जानकर उत्तर दिया___ "जाना तो होगा ही, यह तो निश्चित है। हमें भी अपनी बेटी से बिछुड़ना ही होगा, किन्तु अभी कुछ दिन तो ठहरिए । यह हमारा आपसे साग्रह निवेदन है।"
श्रीपाल विचारवान पुरुष थे। धर्य भी उनमें अगाध था। किसी के हृदय को वे दुखाना नहीं चाहते थे। अतः उन्होंने महाराज वसुपाल के आग्रह को स्वीकार कर लिया।
शुभ कर्मों के प्रताप से जंगल में भी मंगल हो जाया करता है। पुण्यवान व्यक्तियों के मार्ग में आने वाली समस्त बाधाएँ स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं। संकट नष्ट हो जाते हैं। ___ श्रीपाल के साथ भी यही हुआ। समुद्र में धकेल दिये जाने के बाद भी, भटकते-भटकते किसी अज्ञात प्रदेश में एकाकी रह जाने के बाद भी श्रीपाल के पुण्यकर्मों ने अपना प्रभाव दिखाया। मदनमंजरी जैसी सुन्दर, सुशीला राजकुमारी से विवाह हुआ, राजा वसुपाल जैसे श्वसुर उसे मिले और वह सुखपूर्वक रहने लगा।
उधर उस पापी धवल सेठ ने कुमार को समुद्र में धकेलकर मगरमच्छ के आंसू बिखेरना आरम्भ कर दिया। वह चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगा-अरे कोई दौड़ो रे, जल्दी
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