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१३८ पुष्यपुरुष
चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छा गया । वे लोग जब राजधानी के मुख्य मार्ग से होकर राजमहल की ओर जा रहे थे तब सभी नागरिक श्रीपाल को देख-देखकर अपनी राजकुमारी के भाग्य की सराहना कर रहे थे। उनके राजा वसुपाल का व्यक्तित्व भी कुछ कम नहीं था। वे भी वीरपुरुष थे; सुन्दर और शक्तिवान थे। किन्तु यह पुरुष जिसे वे आज देख रहे थे, वह कुछ अनोखा ही दिखाई देता था-कैसा प्रताप था, कितनी मनोहारी मुखछवि थी!
राजमहल में पहुँचकर राजा वसुपाल ने श्रीपाल का समुचित आदर-सत्कार किया और तदुपरान्त उसी नैमित्तिक को बुलाकर विवाह के लिए शुभ मुहूर्त बताने के लिए कहा।
नैमित्तिक ने अपनी गणना इत्यादि करके कहा
"महाराज ! संयोग इसी को तो कहते हैं। विवाह के लिए आज ही का दिन अत्यन्त शुभ है।"
श्रीपाल सारी स्थिति को जान ही चुका था। उसने कोई आपत्ति नहीं की। राजकुमारी मदनमंजरी से उसका विवाह बड़ी धूमधाम से हो गया।
विवाह के उपरान्त श्रीपाल ने महाराज वसुपाल से कहा
"राजन् ! अब मैं अपने देश जाना चाहूँगा। मेरे अन्य स्वजन मेरी प्रतीक्षा करते होंगे।"
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