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पुष्यपुरुष
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तक नहीं थी । वह सरल भाव से मचान पर चढ़ गया
और झुककर समुद्र में देखने लगा
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उसी क्षण उस पापी धवल सेठ ने श्रीपाल को पीछे से एक धक्का देकर समुद्र में धकेल दिया ।
मचान से नीचे समुद्र में गिरते-गिरते श्रीपाल ने शान्त मन से नवकार मन्त्र का जाप प्रारम्भ कर दिया । इस परम पवित्र मन्त्र के प्रभाव से श्रीपाल का बाल भी बाँका नहीं हुआ। वह ज्योंही पानी में गिरा, त्योंही एक मगर - मच्छ ने उसे अपनी पीठ पर बिठा लिया और किनारे की ओर चल पड़ा। 'जल तरणी' विद्या के प्रभाव से उसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं हुआ । मगर की पीठ पर बैठा वह कुछ समय बाद किनारे जा लगा ।
वह कोंकण देश का समुद्र तट था। किनारे पर उतर कर श्रीपाल इधर-उधर घूमने लगा और सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिए ? घूमते-घूमते उसे भूख-प्यास लगी तो उसने किसी वृक्ष के कुछ फलों का आहार किया, किसी झरने से कुछ जल पिया, और फिर थकान के कारण एक चम्पक वृक्ष की छाया में सो गया ।
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कितनी देर तक वह सोया रहा, इसका श्रीपाल को कुछ पता नहीं लगा । किन्तु कुछ ध्वनियों से जब उसकी निद्रा भंग हुई तब उसने देखा कि उसके सामने कुछ सैनिक आदर भाव प्रकट करते हुए खड़े हैं । उसे आश्चर्य हुआ यह नहीं कि मे सैनिक कहाँ से आए क्योंकि प्रदेश
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