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पुण्यपुरुष १३३ दिन उसने उन मित्रों के समक्ष अपने मन की इस दुरभिसन्धि को भी रख ही दिया । उसने कहा___"मित्रो ! कोई उपाय बताओ, किस प्रकार मैं श्रीपाल की इस सारी सम्पत्ति तथा पत्नियों को प्राप्त करूं ?"
मित्रों ने उसे समझाया-"धवल सेठ ! सावधान हो जाभो । पराई वस्तु को हथियाना पाप है। पराई स्त्री पर कुदृष्टि डालना तो महापाप है। यदि तुमने ऐसा विचार मन में रखा तो हमें विश्वास है कि तुम श्रीपाल जैसे पुण्यात्मा का तो कुछ नहीं बिगाड़ सकोगे, उल्टे अपना ही अकल्याण कर बैठोगे।"
इस प्रकार उन चारों मित्रों में से तीन मित्र तो समझाबुझाकर इधर-उधर चले गये, किन्तु एक वहीं बैठा रहा । एकान्त पाकर उस दुष्ट ने अग्नि में घृत उड़ेला
"धवल सेठ ! ये लोग तो डरपोक हैं। यह लड़का श्रीपाल तुम जैसे सयाने और अनुभवी व्यक्ति का बिगाड़ ही क्या सकता है ? चूको मत, कुछ ऐसी तरकीब करो कि न रहे बाँस और न बजे बाँसुरी........."
"क्या मतलब ? क्या मैं श्रीपाल को........ ?"
"भाड़ में धकेल दो। मेरा मतलब है कि भाड़ तो यहाँ है नहीं, समुद्र में ही धकेल दो।" ___ इस प्रकार धवल सेठ को उस कुमित्र की कुबुद्धि का सहारा और मिल गया। उसने मन में निश्चित कर लिया
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