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१३२ पुण्यपुरुष
कारवाँ आगे चल पड़ा।
अब श्रीपाल के पास अपार संपत्ति थी। मूल्यवान सामग्री से भरी नौकाएँ थीं। सेवक थे । सैनिक थे । और सबसे बढ़कर थी मदनसेना तथा मदनमंजूषा जैसी दो-दो सुन्दर पलियाँ।
धवल सेठ के पास भी सम्पत्ति की कोई कमी नहीं थी। किन्तु वह तो स्वभाव से ही लोभी था। इसके अतिरिक्त वह था घोर ईर्ष्यालु । श्रीपाल के सौभाग्य से वह मन ही मन जला-भुना जा रहा था। दिन-रात उसके मस्तिष्क में अब षड्यन्त्र का चक्र चलने लगा । वह सोचा करता था कि क्या करूं, कैसे करूँ, कि इस लड़के की इस प्रभूत सम्पत्ति का स्वामी मैं ही बन जाऊँ।
इतना ही नहीं, धवल सेठ बड़ा कामी पुरुष भी था। कोढ़ में खाज के समान थी यह बात । श्रीपाल की दोनों नवोढ़ा पत्नियों को देखकर वह वासना की अग्नि में जला जा रहा था। वह श्रीपाल की सम्पत्ति ही नहीं, दोनों पत्नियों को भी हथियाना चाहता था।
नौकाओं का वह काफिला धीरे-धीरे आगे बढ़ता जाता था और उसी के साथ बढ़ती चली जा रही थी धवल सेठ की कामेच्छा।
उसके साथ उसके चार घनिष्ठ मित्र भी थे। अपने मन की सब बातें वह उनसे निस्संकोच कहा करता था। एक
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