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यह सत्य है कि पुण्यवान महापुरुष जहां भी जाते हैं, श्री तथा समृद्धि वहीं उनके साथ चलती हैं। रत्नद्वीप में भी ऐसा ही हुआ । राजा कनककेतु ने विदा की बेला में अपने दामाद श्रीपाल और पुत्री मदनमंजूषा को बहुत-सी मूल्यवान सामग्री-सोना, चाँदी, रत्न, हाथी-घोड़े इत्यादि भेंट किये।
विदा की बेला बड़ी भावभीनी हो जाया करती है। समुद्र के किनारे जब श्रीपाल और मदनमंजूषा अपनी विशाल सुसज्जित नौका में चढ़ने लगे तब रानी और राजा ने अपनी गीली आँखों को पोंछते हुए कहा___"बेटी मदन ! हमें भूलना नहीं, और अपने पति की सेवा को ही अपने जीवन का चरम-लक्ष्य बनाए रखना। इसी में तेरी और हमारी शोभा है। __"और बेटा श्रीपाल ! तुम भी इस अबोध बालिका का ध्यान रखना। हमने इसे बड़े लाड़ से पाला-पोसा है...."
वे इतना ही कह सके। उनके नयन फिर अश्रुपूरित हो गये।
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