________________
पुण्यपुरुष
१२७
सहेलियों को देखा, कुछ सोचा, और श्रीपाल की ओर संकेत करते हुए अपने सैनिकों को आदेश दिया
" बन्दी करो इसे ।"
राजाज्ञा होते ही सैनिकों ने श्रीपाल को चारों ओर से घेर लिया। राजा कनककेतु श्रीपाल के अश्व के पार्श्व से आगे निकलकर राजकुमारी के पास पहुंचे और पूछा
J
"
" इस व्यक्ति ने तुम्हें अधिक परेशान तो नहीं किया ? इसे उचित दण्ड मिलेगा, घबराओ नहीं । मैं बहुत चिन्तित हो गया था कि तुम लोगों को वन-भ्रमण में इतना विलम्ब कैसे हो गया । अच्छा हुआ कि मैं समय आ पहुँचा ।"
राजकुमारी को काटो तो खून नहीं । उसने देखा कि उसके पिता को भ्रम हो गया है। इस भ्रम का निवारण शीघ्र होना चाहिए । किन्तु अपने मुख से वह लज्जा और संकोचवश कुछ कह न सकी। उसने महाश्वेता की ओर संकेत पूर्ण आँखों से देखा ।
महाश्वेता एक कदम आगे बढ़ी और उसने हाथ जोड़कर राजा से कहा
"महाराज ! आपको भ्रम हो रहा है। ये जो वीर पुरुष हैं, इन्होंने तो राजकुमारी के प्राणों की आज रक्षा की है । यदि ये समय पर यहाँ पहुँचकर और अपने प्राणों पर खेलकर उस सिंह को मार न डालते तो ....।"
तब राजा ने उस दिशा में दृष्टि की जिधर महाश्वेता
Jain Education International
--
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org