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१२४ पुण्यपुरुष दूत भी दुबारा आ जायगा।" किसी अन्य सखी ने कहा,
और एक बार फिर से वह वन-प्रान्तर उन युवतियों की खिलखिलाहट से भर उठा।
अब राजकुमारी उठ खड़ी हुई। उसने कहा
"तुम सभी एक जैसी चुड़लें हो। चलो यहां से। पिता जी चिन्ता करते होंगे।"
"चलो भाई चलो यहाँ से," महाश्वेता ने मुंह बनाते हुए कहा-'बेचारे देवदूत की तकदीर में तो सिर्फ बेगार ही लिखी थी । इतनी बड़ी, ऐसी प्यारी राजकुमारी के प्राणों की रक्षा करने के प्रतिफल में उसे धन्यवाद का एक फूटा शब्द भी तो नहीं मिलना था।" ।
राजकुमारी को महाश्वेता के इस कथन में अब किसी रहस्य का आभास हुआ। उसने अपनी दृष्टि महाश्वेता के चेहरे पर गड़ा दी और कुछ गंभीरता से कहा___"सच-सच बोल महाश्वेता ! यह सब क्या झमेला है ? तुम लोग ऐसे कैसे बोल रही हो? क्या सचमुच यहाँ कोई वीरपुरुष आया था जिसने हमारी रक्षा की ?"
"आया 'था' नहीं राजकुमारीजी आया 'है' और अब वह जा भी रहा है। आप यदि उसे धन्यवाद के दो शब्द कहना चाहें तो अब भी समय है । जरा पीछे मुड़कर तो देखिए।"
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