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पुण्यपुरुष १२३ "अरे हाँ हाँ, सचमुच........"
"और उस देवदूत के अंग-प्रत्यंग से सौन्दर्य की छटा बिखरी पड़ती थी न ?" _ "हाँ री महाश्वेता ! बिलकुल ऐसा ही था वह देवदूत !" -कहकर जाने किस अंत:प्रेरणा के वशीभूत होकर राजकुमारी ने क्षणभर के लिए अपनी आँखें बन्द कर ली।
श्रीपाल पीछे, समीप ही शान्त खड़ा मुस्कुरा रहा था और सखियों की छेड़छाड़ का आनन्द ले रहा था। . इतने में ही राजकुमारी को फिर से ध्यान आया। वह चकित होकर अपनी सखियों को और मृत सिंह को देखकर बोली
"लेकिन........लेकिन यह सब हुआ कैसे ? यह सिंह कैसे मारा गया? यहाँ तो और कोई नहीं है........." __"कोई है, राजकुमारी जी !" महाश्वेता ने चुटकी-सी लेते हुए कहा- "आपका वह 'देवदूत' अभी यहीं है। धीरज छूट रहा हो तो बुला दूँ उसे ?" ।
"चल हट निगोड़ी, तुझे हर समय हँसी ही सूझती रहती है । मुझे मूर्ख बनाने में तू बड़ी चतुर है। पता नहीं यह सब क्या और कैसे हो गया । मुझे सब कुछ तुम लोग बाद में बताना । किन्तु अब शीघ्र यहाँ से चलना चाहिए। कहीं इस सिंह का कोई दूसरा साथी यहाँ आ पहुंचा तो मरण हो जायगा।"
"सिंह दुबारा आएगा तो राजकुमारीजी का देव
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