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________________ १२० पुण्यपुरुष आश्वस्त हुई। अब उनका ध्यान अपनी एक सखी पर गया जो वहीं भूमि पर मूच्छित पड़ी हुई थी। वे भय के मारे फिर से चीखने-चिल्लाने लगीं-"हाय ! राजकुमारीजी, राज कुमारीजी....हे भगवान ! राजकुमारीजी को क्या हो गया?" श्रीपाल ने यह सनकर इतना तो समझ लिया कि यह जो भूमि पर मूच्छित हुई पड़ी सुन्दरी युवती है वह कोई राजकुमारी है और शेष उसकी सखी-सहेलियां या दासियां हैं। किन्तु इस समय उसे उन लोगों का परिचय प्राप्त करने की उतनी चिन्ता नहीं थी जितनी कि मूच्छित कुमारी के प्राण बचाने की । उसने कहा "आप लोग अपने दुपट्टों से इनकी हवा करें, मैं जल लेकर अभी आता हूँ। घबराएँ नहीं, सिंह के भय से यह मूच्छित हो गई हैं। अभी होश में आ जाएँगी।" इतना कहकर श्रीपाल दौड़कर समीप में ही बहते हुए एक निर्झर पर गया और अपना कमर बन्द खोलकर उसे अच्छी तरह पानी में भिगोकर तुरन्त लौट आया। ___ मूच्छित राजकुमारी के पीले पड़े हुए मुख पर धीरेधीरे श्रीपाल ने अपना भीगा हुआ कमरबन्द निचोड़कर शीतल जल के छींटे दिये । उसकी सहेलियाँ हवा कर रही थीं। यह उपचार कुछ समय तक चला। श्रीपाल अपने घुटनों के बल राजकुमारी के समीप ही बैठा हुआ निरन्तर उसके मुख पर जल के छींटे डाल रहा था। धीरे-धीरे राजकुमारी होश में आ गई। उसने धीरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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