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________________ पुण्यपुरुष ११६ सघन वृक्षों के एक झुरमुट को चीरकर ज्यों ही वह कुछ खले से स्थान में पहुंचा त्यों ही उसने देखा कि एक भयंकर, विशाल वनराज अपना विशाल मुख फाड़े हुए कुछ सुन्दरियों के झुण्ड पर टूट पड़ने के लिए उछाले मारने ही वाला था। . सिंह ने उछाल भरी, किन्तु उससे भी अधिक तीव्रता से बिजली की-सी गति से उछलकर श्रीपाल उन सुन्दरियों और उस सिंह के बीच में आ गया और अपनी तीक्ष्ण तलबार के एक ही भीम-प्रहार से उसने उस झपटते हुए सिंह का सिर काट डाला। - सिंह का शीश और धड़ 'धम्म' की ध्वनि करते हुए भूमि पर गिर पड़े । अस्त-व्यस्त, घबराई हुई वे सुन्दरिया अब भी अपनी सुधबुध भूलकर चीख रहीं थी---"बचाओ ......बचाओ !" । श्रीपाल ने अपनी तलवार म्यान में रखी और उन सुन्दरियों को आश्वस्त करने के लिए उसने कहा "निर्भय हो जाइये। सिंह मारा जा चुका है। अब मेरी उपस्थिलि में स्वयं यमराज भी आपकी देह के एक रोम को भी स्पर्श नहीं कर सकता । डरिए नहीं, शान्त हो जाइए।" प्राणान्तक संकटकाल में भगवान के ही भेजे किसी वीरपुरुष के इन वचनों को सनकर और सिंह को वास्तव में भूमि पर मृत पड़ा हुआ देखकर वे सुन्दरियां धीरे-धीरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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