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११४ पुण्यपुरुष सौभाग्य होगा। इसके पश्चात् ही आप कृपा करके आगे बढ़ें।" . "किन्तु राजन् ! आप यह क्या कह रहे हैं ? मेरे विषय -में आपको कुछ ज्ञात नहीं । आपके लिए मैं अज्ञात कुल-शील व्यक्ति हूँ।"
"रहने दीजिए इस बात को, श्रीमान् ! सूर्य को दीपक दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं होती। आपका स्वरूप, आपका पराक्रम, आपका चरित्र ही आपके उच्च कुलीन होने की साक्षी दे रहा है। कृपा करके हमारी प्रार्थना स्वीकार कीजिए।"
राजा के इस अत्यन्त स्नेहपूर्ण आग्रह को श्रीपाल टाल नहीं सका । यथासमय शुभ मुहूर्त में उसका विवाह राजकुमारी मदनसेना से हो गया और कुछ समय उसने शान्तिपूर्वक मदनसेना की स्नेहछाया में व्यतीत किया। 0
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