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________________ ११२ पुण्यपुरुष छोटा-सा प्रतीक बड़े गहरे विचार उत्पन्न करने वाला हो सकता है-कि मनुष्य चाहे जितने हाथ-पैर मारे, चाहे जितना सम्पत्तिवान, सामर्थ्यवान बन जाय किन्तु उसे अन्त में तो खाली हाथ ही जाना है और इसी माटी में मिल जाना है, जिसे इस समय धवल सेठ थू-थू करता हुआ थूक रहा था। जब श्रीपाल ने इस प्रकार धवल सेठ को मुक्त कर दिया तब बब्बरकुल के अनेक सैनिक श्रीपाल को ही पकड़ने या समाप्त कर देने के लिए अपने-अपने शस्त्र लेकर चारों ओर से दौड़ पड़े। श्रीपाल भी युद्ध के लिए प्रस्तुत था। वह अद्भत खड्गधारी था। उसका युद्ध-कौशल अद्वितीय था। इसके अतिरिक्त उसके पास शस्त्र-घात-निवारिणी विद्या भी थी । अतः शत्रुपक्ष के सैकड़ों सैनिक भी उसका कुछ न बिगाड़ सके और थोड़ी ही देर में श्रीपाल के हाथों गंभीर आघात खाकर इधर-उधर भाग खड़े हुए। बब्बरकुल के राजा को जब यह सूचना मिली तो वह ऐसे अद्भुत पराक्रमी व्यक्ति को देखने के लिए आतुर हो उठा, जो कि अकेले हाथों सैकड़ों और हजारों सैनिकों को परास्त कर सकता था। अपने कुछ सैनिकों के साथ वह शीघ्र ही समुद्र के किनारे पर जा पहुंचा। __ राजा ने दूर से ही श्रीपाल को देखा-मानों साक्षात कामदेव ही आज अपना पुष्प-धनु त्यागकर खड्गहस्त होकर युद्ध के लिए सन्नद्ध हो। श्रीपाल की मुख-छवि से पराक्रम की पराकाष्ठा प्रकट हो रही थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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