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________________ पुण्यपुरुष १११ " अरे बाबा ! तुम मुझे छुड़ाओ तो सही । तुम जो कहोगे वही दूंगा । मेरे पास अटूट सम्पत्ति है । जितनी चाहो उतनी दूंगा । कोई कमी नहीं है । " 1 " बस, कमी है केवल सन्तोष की, है न ? आपके पास अटूट सम्पत्ति है, फिर भी आपको सन्तोष नहीं है, शान्ति नहीं है । हजारों व्यक्ति भूखे रहते हैं, उनके पास सिर छिपाने के लिए टूटा-फूटा घर तक नहीं है, तन ढकने के लिए पर्याप्त वस्त्र तक नहीं हैं, किन्तु आप कभी उन लोगों के विषय में नहीं सोचते । आपको केवल अपनी सम्पत्ति को ही बढ़ाते चले जाने की धुन समाई रहती है। क्यों धवल सेठ, मैं ठीक कह रहा हूँ न ?" " अरे भाई, तुम ठीक ही कह रहे हो । किन्तु अब इस समय इस उपदेश को बन्द करके अपनी तलवार निकालो और मुझे मुक्त करो। देखो मैं उल्टा लटका हुआ हूँ....।" "उल्टे काम करने वालों को उसका फल भी उल्टा मिला करता है श्रीमन्त धवल सेठ !" - कहते हुए श्रीपाल ने अपनी तलवार से सेठ के बन्धन काट दिए । बन्धन कटते ही वह कटे वृक्ष की सरह धम्म से नीचे आ गिरा । रेत होने के कारण उसे कोई चोट नहीं लगी और वह अपने कपड़े झाड़ता हुआ खड़ा हो गया । हाँ, थोड़ी रेत अवश्य धवल सेठ के मुँह में घुस गई, जिसे वह थू-थू करता हुआ निकालता रहा । ज्ञानवान व्यक्ति के लिए यह छोटी-सी घटना, यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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