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११. पुण्यपुरुष
बात बढ़ गई। राजा तक सूचना गई। राजा ने आज्ञा दी
"उस व्यापारी का सारा माल जब्त कर लिया जाय । नौकाएँ छीन ली जाय और उस ढीठ व्यापारी को बाँधकर किसी पेड़ पर उल्टा लटका दिया जाय । __ राजा की आज्ञा मिलते ही उसके सैनिक शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर धवल सेठ के बिखरे हुए सैनिकों पर टूट पड़े । उन्हें तितर-बितर करके उन्होंने धवल सेठ को बाँध लिया और उसी वृक्ष पर उल्टा लटका दिया जिसके नीचे वह विश्राम कर रहा था । सेठ का सारा माल भी सैनिकों ने अपने कब्जे में कर लिया।
धवल सेठ की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। लेने के देने पड़ गये। पेड़ की शाखा से उल्टा लटका हुआ वह अपने भगवान को याद करने लगा।
यह सारा तमाशा अपनी नौका में बैठा हुआ श्रीपाल मजे से देख रहा था। किन्तु धवल सेठ की यह दुर्दशा देखकर उससे रहा नहीं गया। उसने अपनी तलवार सम्हाली और किनारे पर उतर आया। सेठ के पास जब वह पहुंचा तब सेठ ने गिड़गिड़ाकर उससे कहा___"हे वीरपुरुष ! अब तुम मेरे साथी बन गये हो । कृपा करके मुझे इस विपत्ति से छुटकारा दिलाओ।"
श्रीपाल ने मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए पूछा
"तुम्हें इस विपत्ति से मैं छुड़ा तो सकता हूँ, किन्तु इसके बदले में तुम मुझे क्या दोगे ? जरा जानूं तो सही।"
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