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पुण्यपुरुष
अनेक दिन और रात तक लगातार चलता-चलता वह कारवाँ एक दिन बब्बरकुल नामक बन्दरगाह पर जा ठहरा । प्रधान नाविक ने धवल सेठ से कहा-- ___ "स्वामी ! हमें यात्रा करते हुए काफी समय व्यतीत हो चुका है । आज्ञा हो तो इस बन्दरगाह पर ठहरकर लकड़ी, तेल इत्यादि अन्य आवश्यक सामग्री यहाँ से ले ली जाय।"
"ठीक है। नौकाएँ किनारे से लगा दी जायँ।"- सेठ ने आज्ञा प्रदान की। नौकाएं किनारे पर स्थिर हो गई । सेठ के कर्मचारी आवश्यक सामग्री एकत्र करने के लिए नगर में चले गये और उसके हजारों सैनिक समुद्रतट पर इधर-उधर घूमकर प्रकृति का आनन्द लेने लगे।
स्वयं धवल सेठ भी किनारे पर उतर गया और एक छायादार, शीतल स्थान पर गद्दी तकिए लगाकर सुख से बैठ गया।
बब्बरकुल के राज-कर्मचारियों को जब यह सूचना मिली कि कोई बड़ा व्यापारी उनके बन्दरगाह में ठहरा है तो वे उस व्यापारी से राज्य-कर वसूल करने के लिए आये । धवल सेठ से उन्होंने कर देने के लिए कहा।
किन्तु धवल सेठ बड़ा लालची था । वह कर चुकाना नहीं चाहता था। उसने सोचा मेरे पास तो दस सहस्र सैनिक हैं और यह छोटा सा नगर है। इसका राजा मेरा बिगाड़ ही क्या सकता है ? अतः उसने कर चुकाने से इन्कार कर दिया।
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