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१०८ पुण्यपुरुष आश्चर्य में पड़ गये और श्रीपाल की जय-जयकार करने लगे।
जब यान चलने लगे तब धवल सेठ ने अपने मन में विचार किया कि यदि श्रीपाल जैसा महापुरुष यात्रा में उसके साथ रहे तो उसे किसी प्रकार का संकट उपस्थित न होगा। यह सोचकर उसने श्रीपाल के चरणों में एक लक्ष स्वर्णमुद्राएँ भेट में रखकर कहा
"महोदय ! कृपया मेरी ओर से आप ये एक लाख स्वर्णमुद्राएँ स्वीकार कीजिए तथा मेरी एक अन्य प्रार्थना भी स्वीकार कीजिए।"
"वह क्या ?"-श्रीपाल ने पूछा।
"आपके पास यदि समय हो तो आप भी मेरे साथ समुद्र-यात्रा पर चलिए । इसके बदले में मैं आपको जितना कहेंगे उतना धन दूंगा।" ___ "धवल सेठ ! धन का मुझे कोई लोभ नहीं है। हाँ, इस समय धन मेरे लिए कुछ विशेष कारणों से आवश्यक अवश्य है । इसके अतिरिक्त मैं दूर-दूर देशों की यात्रा करके पर्याप्त अनुभव भी प्राप्त करना चाहता हूँ। अतः मुझे आपकी प्रार्थना स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है।"
धवल सेठ प्रसन्न हो गया। एक सुन्दर, सुसज्जित, मजबूत नौका पर श्रीपाल ने अपना डेरा जमा लिया। नौकादल द्रत गति से समुद्र की छाती को चीरता हुआ आगे बढ़ चला।
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