________________
पुण्यपुरुष
१०७
"त्याग दूंगा, श्रीमान् ! समझिए कि त्याग ही दिया। किन्तु........किन्तु मेरे जलयान........?"
"उनकी चिन्ता न करो। तुम्हारी देवी को मैं प्रसन्न कर लूँगा । चलो।"
धवल सेठ के मन में आशा जागी। वह श्रीपाल को मार्ग दिखाता हुआ समुद्र की ओर चल पड़ा। ___ अनन्त की सीमा तक फैले नीले समुद्र में तरंगें उठ रही थीं, गिर रही थीं। उनकी गति के साथ धवल सेठ के पाँच सौ जलयान भी ऊपर-नीचे हो रहे थे, किन्तु लाख प्रयत्न करने पर भी वे एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पा रहे थे । धवल सेठ श्रीपाल को अपने सबसे बड़े जलयान पर ले गया। श्रीपाल ने परिस्थिति को निरीक्षण किया। कुछ विचार किया, और फिर उस जलयान के सबसे ऊपरी भाग पर, एकान्त में जाकर एकाग्रतापूर्वक पवित्र नवकार मंत्र का जाप किया। __ कुछ समय तक श्रीपाल का यह जप-ध्यान चलता रहा । उसके बाद उसने अपने नेत्र खोले और विकट सिंहनाद किया। आकाश को गुजा देने वाले उस सिंहनाद को सुनकर वह जलदेवी जिसने उन यानों को स्तम्भित कर रखा था, उन्हें छोड़कर भाग गई।
धवल सेठ के जलयान चल पड़े । स्वयं सेठ और उसके हजारों सैनिक तथा कर्मचारी इस चमत्कार को देखकर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org