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पुण्यपुरुष
यदि वह सत्य बता दे तो भला फिर श्रीपाल उसके वश में क्यों आने लगा ? वह बात ही ऐसी थी ।.
सेठ चक्कर में पड़ गया । सोचता रहा । अन्त में झिझकता - झिझकता वह बोला
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" महाशय ! आप महापुरुष हैं । आपके समक्ष अब मुझसे असत्य कथन नहीं हो सकेगा । सच-सच ही कहूँगा । बात यह है कि, जैसा कि मैंने अभी कहा, किसी जलदेवी ने मेरे सभी थानों को जकड़ लिया है और वह उन्हें तभी मुक्त करेगी जब उसे किसी बत्तीस लक्षणयुक्त सर्वांग सुन्दर पुरुष की बलि चढ़ाई जायगी । इस सारे नगर में मुझे आपके अतिरिक्त अन्य कोई ऐसा उपयुक्त पात्र दिखाई नहीं दिया । इसलिए........।"
श्रीपाल के अट्टहास से धवल सेठ धूजने लगा। उसने हाथ जोड़ लिए ।
" इसीलिए आप मेरी बलि अपनी उस देवी को चढ़ाना चाहते थे ?" श्रीपाल ने हंसते-हँसते कहा - "अरे धवल सेठ ! तुम केवल भोले ही नहीं स्वार्थी भी हो और सबसे बढ़कर तो यह कि तुम मिध्यात्वी हो। इस प्रकार निरपराध जीव-जन्तुओं अथवा मनुष्यों की बलि चढ़ाना घोर पापकर्म है । ऐसा करने से कभी कोई देवता प्रसन्न नहीं हो सकता, उल्टे अनन्त काल तक नरक की यातना सहनी पड़ती है | अतः यदि अब भी तुम में कुछ बुद्धि शेष हो तो बलि चढ़ाने की अपनी धारणा को जीवन भर के लिए त्याग दो ।"
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