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________________ पुण्यपुरुष १०५ श्रीपाल के हाथों बुरी तरह पिटे-पिटाये सैनिक और उनका नायक अपने स्वामी धवल सेठ के पास पहुँचे और उसको सारी घटना सुनाई। सुनकर धवल सेठ चिन्ता में पड़ गया । उसे श्रीपाल की आवश्यकता थी, और वह वश में आ नहीं रहा था । सोचते-सोचते उसने स्वयं ही श्रीपाल के पास जाने का निर्णय किया और तुरन्त चल पड़ा । एक स्थान पर उसे श्रीपाल विश्राम करता हुआ दिखाई पड़ गया । धीरे-धीरे, कुछ डरता डरता वह उसके पास पहुँचा और विनयपूर्वक अपना परिचय देते हुए बोला- " श्रीमान् ! मैं इस नगर का नगरसेठ धवल हूँ । दूरदूर के देशों से मेरा व्यापार चलता है । इस समय भी मेरे पाँच सौ जलयान यात्रा पर जाने के लिए खड़े हैं । किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि किसी जलदेवी ने उन सभी यानों को जकड़ रखा है । वे टस से मस नहीं हो रहे हैं । " इतना कहकर धवल सेठ मौन हो गया । तब श्रीपाल 'पूछा ने G "नगरसेठ ! आपके जलयान यदि नहीं चल रहे तो उससे मुझे क्या ? आपने मुझे पकड़ने के लिए अपने सैनिक क्यों भेजें ? इतनी खून-खराबी क्यों करवाई ? यदि आप सत्य कहें, तथा मुझसे कुछ सहायता चाहते हों तो स्पष्ट कहिए ।" अब धवल सेठ चकराया । जो बात उसके मन में थी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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