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________________ १०४ पुण्यपुरुष ___"अथवा फिर तुम मुझे बन्दी बनाकर ले चलोगे। यही न ?" "आप ठीक कह रहे हैं।" __ "तो तुम्हें स्वयं पर और अपने इन सैनिकों पर बड़ा भरोसा है । किन्तु प्रतीत होता है कि अब तक तुम लोगों ने केवल बेचारे, निरपराध, अशक्त लोगों को ही कष्ट दिया है । तुम्हारा पाला कभी किसी वीर और स्वाभिमानी पुरुष से नहीं पड़ा।" __ "हमें इन सब बातों से कोई मतलब नहीं महाशय ! आप सीधी तरह चलेंगे या फिर........।" इतना कहते-कहते नायक ने अपनी तलवार म्यान से बाहर निकाल ली। उसी क्षण सारे सैनिक भी अपनी-अपनी तलवारें निकालकर आगे बढ़ने लगे। विवश होकर श्रीपाल को भी अपनी तलवार उठानी पड़ी। ____ तलवारों से तलवारें टकराने लगीं, मानों बिजलियाँ एक-दूसरे पर टूट पड़ी हों। श्रीपाल अत्यन्त वीर और धीर पुरुष था। उसने देखते-देखते ही अनेकों सैनिकों को घायल कर दिया। शेष सैनिक इस अकेले वीरपुरुष के पराक्रम को देखकर अपनी-अपनी जान बचाकर भाग खड़े हुए। श्रीपाल ने अपने माथे का पसीना पोंछा, तलवार म्यान में की और निश्चिन्ततापूर्वक आगे बढ़ गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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