SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुण्यपुरुष १०३ श्रीपाल चकित | यह क्या माजरा है ? कौन हैं ये सैनिक ? क्यों उसे घेरकर खड़े हो गए हैं ? क्या अपराध हो गया है उससे ? कुछ समझ नहीं सका वह । शान्त और निश्चिन्त वह खड़ा रह गया और प्रतीक्षा करने लगा कि कोई उससे कुछ कहे । तभी उन सशस्त्र सैनिकों के नायक ने कुछ आगे बढ़कर श्रीपाल से कहा "महाशय ! आप जो कोई भी हों, कृपया हमारे साथ चलिए । हमारे स्वामी ने आपको पकड़ लाने की आज्ञा हमें दी है ।" श्रीपाल को और भी अधिक विस्मय हुआ कि आखिर यह तमाशा क्या है ? धीर किन्तु गम्भीर स्वर में उसने पूछा "नायक ! कौन हैं तुम्हारे स्वामी ? और क्यों मुझे इस प्रकार बुलवाया गया है ? स्वामी होंगे तो तुम्हारे । किन्तु मैं तो किसी का दास नहीं हूँ । यदि मैं तुम्हारे साथ एक बन्दी के समान चलने से इन्कार करूँ तो ?" "महाशय ! हमारे स्वामी हैं नगरसेठ श्रीमन्त धवल । आर्यावर्त्त से बाहर जावा, सुमात्रा और स्यामदेश से लेकर से लेकर अरब, ईरान और यूनान तक उनकी इंडियाँ स्वीकारी जाती हैं । वे बड़े शक्तिशाली हैं। उन्होंने आपको बुलवाया है तो आपको चलना तो पड़ेगा ही, चाहे स्वेच्छा से चलें अथवा फिर........" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy