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५०० श्लोकों में इस कथा की, 'श्रीपाल चरित्र' के नाम से रचना की। वृद्ध तपागच्छ के लब्धीसागर गणी ने ५०७ श्लोकों में "श्रीपाल कथा" का उटेंकन किया है जिनका रचनाकाल सं० १५५७ है । वृद्ध तपागच्छ के धर्मधीर ने संस्कृत भाषा में "श्रीपाल चरित्र' को लिखा जिनका रचनाकाल सं० १५७३ है। तपागच्छीय ज्ञानबिमलसूरी ने संस्कृत गद्य में सं० १७४५ में 'श्रीपाल चरित्न' का निर्माण किया। खरतरगच्छ के जयकीर्ति सूरि ने संस्कृत गद्य में जिसका ग्रन्थान ११०० है, 'श्रीपाल चरित्र' की रचना की। रचनाकाल १८६८ है। इस पर एक टीका भी प्राप्त है, किन्तु उसका लेखक कौन है-यह अभी तक निर्णय नहीं हो पाया है। जीवराजगणी और सोमचन्द्रगणी ने संस्कृत गद्य में 'श्रीपालचरित्र' की रचना की है। विजयसिंहसूरि, वीरभद्र सूरि, प्रद्युम्नसूरि, सौभाग्यसूरि, हर्षसूरि, क्षेमलक, इन्द्रदेवरस, विनयविजयजी, लब्धिमुनि प्रभृति सन्तों ने श्रीपाल को अपने चरित्र का नायक बनाया। इनके अतिरिक्त 'श्रीपाल रास' भी अनेक मिलते हैं। विस्तार भय से उन सभी ग्रन्थों की लम्बी सूची यहां नहीं दी जा रही है ।
दिगम्बर परस्परा में भट्टारक सकलकीति का रचित 'श्रीपाल चरित्र' प्राप्त होता है। यह ग्रंथ ७ परिच्छेदों में विभक्त है । इनके साथ ही विद्यानन्दी, मल्लिभूषण, श्रुतसागर, ब्रह्मनेमिदत्त, शुभचन्द्र, पं० जगन्नाथ, और सोमकीर्ति ने भी 'श्रीपाल चरित्र' की रचनाएँ की हैं। सं० १५३१ में सिद्धसूरि ने श्रीपाल चरित्र पर एक नाटक का भी निर्माण किया ।
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