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पुण्यपुरुष ८६ पहिचाना नहीं होगा। कैसे पहिचानती भला? तूने कब इसे देखा ? अरे, यह अपना शशांक है, जो चम्पानगरी से ही हमारे पीछे पड़ा है........."
कहकर रानी कमलप्रभा खूब हँसी। मैनासुन्दरी भी प्रसन्न होकर बोली
"भैया शशांक ! तुम्हारे विषय में बीच-बीच में कुछ सुनती तो रहती थी माताजी से, और....इनसे । देखा तुम्हें आज ही है । और आज देखकर विश्वास हो गया कि दोनों की जोड़ी बड़ी अच्छी है। भोले-भाले लोगों को भ्रम में डालने में आप दोनों एक-दूसरे से बढ़कर ही हैं।"-कहकर मैनासुन्दरी ने एक प्रेमपूर्ण कटाक्ष श्रीपाल की ओर फेंका। __श्रीपाल भी मुस्कराया और अब उसने शशांक का हाथ फिर से पकड़कर उसे अपने पास बिठा लिया, मानो वह उनका कोई अनुचर नहीं, आत्मीय ही हो।।
क्या कोई आत्मीय शशांक से बढ़कर अपना हो भी सकता है ?
"तो सार-संक्षेप यह है,"---शशांक ने कहा- "कि उस दुष्ट नागराज अजितसेन ने ही एक के बाद एक भयानक विषधरों को महारानीजी और कुमार, आपको डस लेने के लिए भेजना जारी रखा । आप तो उस कोढ़ियों के दल में मिलकर और फिर रोग-ग्रस्त होकर उन दुष्टों के
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