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________________ १६ पुण्यपुरुष देखकर अब संपेरा स्वयं को अधिक समय तक वश में न रख सका-वह खिलखिलाकर हँस पड़ा। और उसी समय श्रीपाल अपने आसन से उठा और जाकर सँपेरे के गले लग गया। बोला___ "अरे बदमाश, शशांक के बच्चे ! तूने हमें ही भ्रम में डाल दिया। हम तो घबराने लगे थे कि यह किस मायावी के जाल में फँसने जा रहे हैं। तूने यह सब क्या तमाशा रचाया है ? जल्दी-जल्दी सारी बात बता । चल, इधर बैठ मेरे पास ।" ___ कहकर श्रीपाल ने शशांक को अपने आसन की तरफ बाँह पकड़कर घसीटा। किन्तु अपनी बाँह छुड़ाकर शशांक पहले सीधा रानी कमलप्रभा के चरणों में साष्टांग लेट गया। उन्हें नमनकर, आशीर्वाद प्राप्त कर, उसने मैनासुन्दरी को प्रणाम किया और श्रीपाल को प्रणाम करता हुआ अपनी रहस्य कथा कहने लगा___ "संक्षेप में ही कहूँगा, प्रभु ! बहुत थका हुआ हूँ। भूख भी बड़ी कड़ाके की लगी है। बहुत समय से निश्चिन्त होकर भोजन भी नहीं किया। आज तो बस बहूरानी के हाथ का ही भोजन करने का व्रत लेकर आया हूँ........।" "अच्छा-अच्छा, शशांक ! आज तुझे बहूरानी के हाथ का बना भोजन ही मिलेगा। अरे बहू, मैना ! तूने इसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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