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८६ पुण्यपुरुष जंगल-जंगल की खाक छानकर अपने प्राणों की बाजी लगाकर मैंने इन सो को खोजा है, पाला है और सिद्ध किया है। मेरा विश्वास है कि आपने कभी ऐसे विचित्र सर्प नहीं देखे होंगे। आपके समान उदार महामना के पास बड़ी आशा लेकर आया हूँ। आज्ञा हो तो कुछ खेल दिखाऊँ ?"
"हाँ, हाँ, दिखाओ। तुम्हें इसीलिए तो भीतर बुलाया है। किन्तु भाई ! अपने इन पिटारों को जरा दूर ही रखो। कौन जाने........." __ श्रीपाल के इस कथन को बीच में ही अपनी एक हलकी-सी मुसकान के साथ सँपेरे ने टोका___"आप चिन्ता न करें महाराज ! यह बूढ़ा सँपेरा इन भयंकर विषधरों का भी काल है। मैंने इन्हें ऐसा सिद्ध किया है कि अब ये मेरे सामने यूँ भी नहीं कर सकते। आप जरा देखिए तो सही।"
श्रीपाल, मैनासुन्दरी तथा रानी कमलप्रभा अपने-अपने आसनों पर बैठे चुपचाप, उत्सकतापूर्वक सँपेरे का कार्य देखने लगे। __ सपेरे ने एक-एक करके अपने सारे पिटारे उघाड़ दिये और उनमें से जो वस्तुएं दृष्टिगोचर हुईं उन्हें देखकर वे तीनों विस्मय-विमुग्ध रह गये-सुवर्ण और रत्नों से निर्मित अनेक छोटी-बड़ी, रंग-बिरंगी सर्पाकार लड़ियां एक के बाद
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