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नियमनिष्ठा का चमत्कार | १६ "आज से मैं कभी भी हरे वृक्षों को नहीं काटूंगा। जहाँ भी सूखा काष्ठ मिलेगा, उसी को काटकर उदर-पूर्ति करूंगा।"
मुनि अपने उपाश्रय को चले गए और अकिंचन जंगल में लकड़ी काटने चला गया। अब वह नित्य हो सूखे वृक्षों को लकड़ियां काटकर लाता । उसका नियम और जीविका दोनों साथ-साथ विना किसी रुकावट के चलते रहे।
वर्षा ऋतु में चारों ओर हरियाली छा गई । सूखे वृक्षों में भी पते निकल आये। अकिंचन पूरे जंगल में भटका, पर कहीं भी सूखी-निर्जीव लकड़ी नहीं मिली। अकिंचन खाली हाथ घर लौटा । अकिंचन के साथियों ने समझाया___"अकिंचन ! ऐसे खाली हाथ कब तक लौटते रहोगे ? जीवन है तो व्रत-नियम भी हैं। जब जीवन ही नहीं तो नियम का पालन कैसे करोगे। आपत्तिकाले मर्यादा नास्ति-के अनुसार वर्षा ऋतु में सूखी लकड़ियों का नियम छोड़ दो-ग्रीष्म ऋतु में नियम पालन कर लेना।"
अकिंचन का उत्तर था
"साथियो ! धर्मविहीन जीवन किस काम का? यह तो मेरी परीक्षा है। अब तक मैंने नियम का पालन किया, अब परीक्षा के समय नियम को क्यों त्यागू। नियम पालन
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