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८६ | सोना और सुगन्ध पाता वह दीर्घ-संसारी होता है। मोक्ष उससे बहुत दूर रहता है । बार-बार उसे इस संसार में आना पड़ता है। इसके विपरीत क्रोध को शान्त करने वाला साधु ही अल्प-संसारी होता है और शीघ्र ही मोक्ष पद को प्राप्त करता है।" __ प्रभु की वाणी का अनुसरण कर मुनि दमसार ने क्रोध को जीतने का दृढ़ संकल्प किया। क्षमा, शान्ति और उपशम की आराधना-साधना में जुट गए। दमसार वास्तव में ही दमसार अर्थात् सम-सार (क्षमा ही सार) बन गई। और सातवें दिन ही उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। देवताओं ने दुन्दुभिनाद करके केवली मुनि दमसार का जयघोष किया।
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