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दमसार-शम-सार | ८१ प्रतिवोधित राजकुमार दमसार ने प्रवजित होने का दृढ़ संकल्प कर लिया।
राजा सिंहरथ और महारानी सुनन्दा ने सुना तो मोह से विह्वल हो गये । पिता ने पुत्र से कहा__ "पुत्र ! इस राजसिंहासन की परम्परा क्या यों ही त्याग दोगे ? तुम्हारी तरह यदि मैं भी पिता का राज्य न लेता, मेरे पिता अपने पिता का राज्य न लेते तो यह राजसिंहासन कभी का समाप्त हो जाता। मेरा राजसिंहासन ही क्यों, यदि सभी लोग शासन की परम्परा छोड़ देते और संयम ग्रहण करते तो आज न कोई राजा होता, न राज्य और फिर यह प्रजा भी क्यों होती?"
दमसार यह जानता था कि पिताजी मुझे संयम ग्रहण करने से रोकेंगे और पिता की अनुमति बिना वीरप्रभु दीक्षा नहीं देंगे। अतः दमसार ने विवेकयुक्त वचन कहे
"पिताजी ! आप राजा न होते, मेरे पितामह राजा न होते, तो भी संसार अपनी उसी गति से चलता, जिस गति से आज चल रहा है । क्या राजा बनकर राज्य करने का सुख स्थायी है ? पिताजी ! क्या राजा कभी बूढ़ा नहीं होता या उसे मृत्यु का भय नहीं होता? यदि भगवान महावीर राज्य का त्याग न करते तो इस विश्व का कल्याण कौन करता? यह संसार दोनों के लिए है- भौतिक सुख भोगने वालों के लिए भी और आत्म-कल्याण करने वालों के लिए भी; जो जिसमें सुख मानें, वह वही करे।
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