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किया जाएगा, क्योंकि तुमने ऐन वक्त पर राज्य को वर्बाद होने से बचाया है।" के दुष्ट की दुष्टता फल गई। पालक के मन की मुराद पूरी हो गई। तुरन्त उसने राजवाटिका में ही कोल्ह मैंगवाया, मनुष्यों को पेलने वाला कोल्ह। जैसा गन्ना पेलने का कोल्हू होता है, उसी तरह का बड़े आकार का कोल्हू उस युग के राजा भयंकर अपराधी को मृत्यु दण्ड देने का के लिए रखते थे। चार जल्लादों सहित कोल्हू को राजबाटिका में स्थित कर दिया । पालक को काल्हू और मल्लादों के साथ देखकर स्कन्दमुनि परिस्थिति की विकहता को भांप गये। आने वाले संकट की आशंका से उन्होंने पूछा-पालक ! यह क्या है ?
पालक ने आँखें तरेर कर कहा-तुम्हारी मौत ! और न सिर्फ तुम्हारी, तुम्हारे इन पाँच सो ढोंगी पाखण्डी चेलों की भी । बहादुर व्यक्ति अपने अपमान का बदला लेकर ही दम लेता है। आज अपना पुराना हिसाब-किताब 'चुकता होगा।" - मुनि स्कन्दकुमार ने पालक को समझाया-साधुओं को छेड़ना आग से खेलना है । फिर हमने तो तेरा कुछ बिगाड़ा ही नहीं है, यदि तेरी दुश्मनी भी है तो मुझसे है, इन पाँच सौ साधुओं ने तेरा क्या विगाड़ा है ?
पर पालक को समझाना भेंस के आगे बीन बजाना सिद्ध हुआ। वह और ज्यादा खिसिया गया और दुष्ट ने
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