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७२ | सोना और सुगन्ध भगवान से पूछा___"प्रभो ! मैं उन प्राणघातक उपसर्गों में भी आराधक रहूँगा या विराधक हो जाऊँगा ?"
भगवान ने बताया-"तुम्हें छोड़कर सभी मुनि आराधक होंगे।" - स्कन्द आचार्य ने प्रसन्नता के आवेग में कहा
"भगवन् ! फिर तो मुझे अवश्य जाने दीजिए। मेरे जाने से पांच सौ साधु आराधक बनें । मेरे लिए यही सब कुछ है । आप आज्ञा दीजिए।"
मुनिसुव्रत स्वामी ने अपने शिष्य स्कन्दाचार्य को पांच सौ मुनियों सहित विहार करने की आज्ञा दे दो।
स्कन्दाचार्य राजा दण्डक के नगर कुम्भकारकटक में पाँच सौ साधुओं सहित पहुंचे। दुष्टात्मा पुरोहित पालक को जब यह मालूम हुआ कि स्कन्दाचार्य पाँच सौ साधुओं सहित नगर में आ रहे हैं तो उसने अपना पुराना बदला लेने की योजना बनाई । सांप दूध पीकर भी जहर उगलता है। गाय घास खाकर भी दूध देती है । दुर्जन और सज्जन के स्वभाव में यही अन्तर है। स्कन्दाचार्य के आगमन से पूर्व हो पुरोहित पालक ने राजवाटिका में अस्त्र-शस्त्र छिपा दिये। कुछ शस्त्र पेड़ों के झुरमुट, पत्तों, झाड़ियों में छिपा दिये, और कुछ को जमीन खोदकर गड़वा दिया । मुनि स्कन्दाचार्य पाँच सौ साधुओं सहित राजोद्यान में ठहरे। - मुनि स्कन्दाचार्य की देशना सुनने, उनके दर्शन करने
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