SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षमा और क्रोध का द्वन्द्व | ७१ प्रभु ने संसार की अनित्यता और आत्मा की नित्यता का ऐसा मनोहारी प्रवचन दिया कि श्रोता मुग्ध हो गए । स्कन्दकुमार को तो तत्काल ही वैराग्य हो गया । उसने पाँच सौ राजपुत्रों के साथ मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली । 1 स्कन्दकुमार अध्ययन-मनन और आत्म-साधना में लग गये । धर्मतस्वों के मर्मज्ञ और तपःपूत मुनि स्कन्द को भगवान सुव्रत स्वामी ने पाँच सौ साधुओं का आचार्य बना दिया । एक वार मुनि स्कन्दाचार्य ने भगवान सुव्रतस्वामी से निवेदन किया - "भगवन् ! कुम्भकारकटक नगर के शासक नरपाल euse गृहस्थाश्रम के सम्बन्ध से मेरे बहनोई तथा उनकी धर्मपत्नी पुरन्दरयशा मेरी बड़ी बहन है। यदि आपकी अनुज्ञा हो तो मैं राजा - प्रजा को प्रतिबोध देने राजा दण्डक के नगर को प्रस्थान करूँ ।" मुनि स्कन्दकुमार का यह परोपकारी विचार सुनकर सुव्रत स्वामी विचार में पड़ गये। उन्होंने अपने शिष्य स्कन्दाचार्य से कहा " वत्स ! तुम्हारा विचार तो ठीक है, लेकिन...।" कुछ रुककर पुनः वोले - "वहाँ तुम सभी पर प्राणघातक उपसर्ग होंगे ।" अपनी जिज्ञासा को खोलते हुए स्कन्दमुनि ने पुनः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy