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६० | सोना और सुगन्ध यों सावन में और भी चीजें होती हैं, पर सावन के अन्धे की आँखों में हरियाली इस सोमा तक समा जाती है अथवा छा जाती है कि उसके देखे हुए सब दृश्य हरियालो से ढक जाते हैं और उसे अपनी देखी हुई पूर्वस्मृति में हरा-ही-हरा दीखता है।
विशालानगरो का राजकुमार महल की छत पर बैठा इन्हीं विचारों में लीन था कि आकाश में काले-भूरे बादल घिर आये । क्षण-भर में ही अँधेरा हो गया और फिर पानी बरसने लगा। दो घण्टे खूब पानी बरसा, फिर अपराह्न का अस्ताचलगामी सूर्य बादल की ओट से झाँकने लगा और खुले नीले आकाश में इन्द्रधनुष अपनी सतरंगी आभा से सबका मन मोह रहा था। विशालानगरी का राजकुमार आसमान की ओर देखता हुआ सोच रहा था'इन बादलों का अस्तित्व कितना अस्थिर है ? ये बादल हवा के एक झोंके से ही छिन्न-भिन्न हो जाते हैं । अभीअभी एक भूरे बादल ने सूरज को ढक लिया था, और क्षण-भर में हो हट गया-कभी यहाँ, कभी वहाँ । टिकना तो ये जानते ही नहीं । घड़ी भर पहले पूरा आकाश कालेसफेद बादलों ने ढक लिया था और इस वसुन्धरा को जलमग्न करके जाने कहाँ चले गये सब-के-सब? इस मनुष्य-जीवन का अस्तित्व भी क्या इन बादलों जैसा क्षणभंगुर और अस्थिर नहीं है ? पिताजी मुझे राजमुकुट देना चाहते हैं, पर क्या मेरे जीवन की सार्थकता राजा बनकर
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