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भाव तपस्वी : कूरगड़क
. हर संस्कारी मनुष्य संयम ग्रहण करता है और प्रत्येक संयमधारी संस्कारी होता है—एक ही बात है; कहनेसमझने का ही भेद है, दोनों में। लेकिन प्रतिबोधित होने का कोई-न-कोई निमित्त अवश्य होता है । कोई जरा-मृत्यु से भयभीत स्वयं ही प्रतिबोधित होता है और संसार त्यागकर साधु वन जाता है। कोई किसी घटना से प्रभावित हो प्रतिबोधित होता है और कोई किसी ज्ञानी गुरु के उद्बोधन से अपनी वैराग्य भावना को जगा लेता है। .. श्रावण का महीना । सवेरे से मूसलाधार वर्षा हो रही है । अब दोपहर को आकाश निरभ्र है। चारों तरफ धूप फैली है। धूप के कारण हरियाली खिल उठी है-हरियाली की गहराई कम हो गई है और उसमें हरेपन की चमक आ गई है। चारों तरफ हरा-ही-हरा दिखाई देता है। श्रावण का महीना और उसकी हरियाली ऐसी प्रभावी होती है कि सावन के अन्धे को हरा-ही-हरा दोखता है।
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