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५८ | सोना और सुगन्ध यज्ञ का फल उस उच्छवृत्तिधारी ब्राह्मण के सेर भर सत्त के दान के बरावर भी नहीं है, अतः धर्मराज आप ही गहराई से चिन्तन कोजिए, इसमें मैंने मिथ्या क्या कहा है।
न्योले को बात का उत्तर धर्मराज के पास नहीं था। उनका मिथ्या अहंकार बर्फ को डलो की तरह गल चुका था। वे आँख मूदकर सोच रहे थे, अन्तनिरीक्षण कर रहे थे। ज्यों हो उन्होंने आँख खोली, न्योला वहाँ से गायब था।
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