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सच्चा यज्ञ | ५५ दूसरे ही क्षण ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से निवेदन कियापतिदेव ! आप अतिथि देव को मेरा विभाग प्रदान कर दें, ताकि ये पूर्ण रूप से सन्तुष्ट हो जायें।
ब्राह्मण-प्रिये ! तुम्हारा कथन सही है पर तुम स्वयं भी तो कई दिनों से भूखी हो, तुम्हारा कौर छीनकर मैं इसे कैसे दे सकता हूँ? तुम्हें भूखो रखकर मैं तुम्हारा हिस्सा इसे दूंगा तो मुझे पाप नहीं लगेगा क्या?
ब्राह्मणी-प्राणनाथ ! मेरी तरह आप भी तो कई दिनों से भूखे थे, जैसे आपने अपना हिस्सा देकर अपना कर्तव्य निभाया है, वैसे ही मेरा हिस्सा देने में संकोच न करें। यदि अतिथि असन्तुष्ट होकर अपने घर से जायेगा तो बहुत बड़ा पाप हमें लगेगा। ___ पत्नी के प्रेम भरे आग्रह को सम्मान देकर ब्राह्मण ने पत्नी का हिस्सा भी उस अतिथि को दे दिया। अतिथि उसे भी खा गया, पर उसका पेट नहीं भरा। उस अतिथि ने पुनः भोजन की याचना की । ब्राह्मण उसको याचना को सुनकर अत्यन्त चिन्तित हो उठा । चिन्तातुर पिता को देखकर पुत्र ने सनम्र पिता से प्रार्थना की-पिताश्री ! आप किञ्चित् मात्र भी चिन्तित न हों, और मेरा हिस्सा अतिथि को प्रदान कर उसे सन्तुष्ट कीजिए । वृद्ध मातापिता भूखे रहें और मैं नौजवान पुत्र भोजन करूँ, यह कहाँ
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