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सच्चा यज्ञ | ५३. न्योले को देखा। वह साधारण न्योला नहीं; पर विचित्र न्योला था। उसका आधा शरीर स्वर्ण की तरह चमचमा रहा था । एक पण्डित आगे बढ़ा, उसने न्योले को सम्बोधित कर कहा-तुम कौन हो? कहाँ से आये हो ? हमने शास्त्रोचित यज्ञ कार्य किया है, फिर तुम उसकी निन्दा व आलोचना कैसे कर रहे हो? तुम्हारी आलोचना का क्या आधार है ? और वह ब्राह्मण कौन था जिसकी तुम मुक्तकण्ठ से प्रशंसा कर रहे हो ?
उस दिव्य रूपधारी न्योले ने मुस्कराते हुए कहा-मैं व्यर्थ की प्रशंसा और निन्दा नहीं कर रहा हूँ, किन्तु जो सत्य तथ्य है, वही तुम्हारे सामने रख रहा हूँ। लो सुनो, वह घटना इस प्रकार है-कुरुक्षेत्र में एक गरीब ब्राह्मण परिवार रहता था, वह उच्छवृत्ति द्वारा अपने जीवन का निर्वाह करता था। उस परिवार में ब्राह्मण, ब्राह्मणी, पुत्र
और पुत्रवधू ये चार प्राणी थे। वह ब्राह्मण दिन के छठे भाग में अपने परिवार के साथ भाजन करता था । जो भी मिलता, उससे वे सभी सन्तुष्ट थे।
एक बार कुरुक्षेत्र में भयंकर दुष्काल गिरा । खेतों में कहीं पर भी अन्न पैदा नहीं हुआ। इसलिए वह ब्राह्मण परिवार कई दिनों तक अन्न से वंचित रहा। सभी को लम्बे समय तक उपवास करने पड़े। ब्राह्मण प्रातःकाल से लेकर सायंकाल तक अन्न की तलाश में घूमता, पर अन्त
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