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सच्चा यज्ञ
बात महाभारत काल की है। महाराज युधिष्ठिर ने एक विराट् अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया और यज्ञ सानन्द सम्पन्न हुआ। भारत के विविध अंचलों से आये हुए राजागण युधिष्ठिर से विदाई लेकर लौट रहे थे। ब्राह्मण-गण दक्षिणा में अपार धन पाकर प्रसन्नता से झमते हुए धर्मराज युधिष्ठिर की जय-जयकार कर रहे थे। सभी ओर प्रसन्नता का वातावरण था। उसी समय एक न्योले ने यज्ञभूमि में प्रवेश किया। उसने मानव की भाषा में युधिष्ठिर को सम्बोधित करते हुए कहा-युधिष्ठिर ! तुम अश्वमेध यज्ञ कर बहुत ही प्रसन्न हो रहे हो, और अपने को महान दानी अनुभव कर रहे हो। पर मैं स्पष्ट शब्दों में तुम्हें बता रहा हूँ कि तुम्हारे प्रस्तुत विराट् यज्ञ का फल उस कुरुक्षेत्र निवासी उच्छवृत्तिधारी महान् दानी ब्राह्मण के सेरभर सत्तु के दान के बराबर भी नहीं है, फिर व्यर्थ क्यों अभिमान कर रहे हो?" ... न्योले की बात सुनकर सभी सकपका गये। सभी ने
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