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समदृष्टि महावीर | ५१ दूर निकल गये थे। वह बड़ा कुपित हुआ। अज्ञानी था, उसने सोचा-इस श्रमण ने ही मेरे बैल चुरा लिये हैं और ढोंग कर रहा है। यह सोचकर वह रस्सी से श्रमण महावीर को पीटने की तैयारी करने लगा....
इन्द्र ने स्थिति जानी और तुरन्त पहुँचकर कहा__ "मूर्ख ! तू जिसे चोर समझ रहा है, वे राजा सिद्धार्थ के तपस्वी राजकुमार वर्धमान हैं। तू यह क्या करने जा रहा है ?" ___ गोपाल बेचारा अपने अपराध की क्षमा मांग कर चला गया। - तब इन्द्र ने महावीर की समाधि भंग होने पर कहा
"प्रभु ! लम्बे साधना-काल में आप इस प्रकार कव तक उपसर्ग, परीषह और संकट सहते रहेंगे? कृपा कर मुझे अपनी सेवा में रहने दीजिए ताकि मैं आपकी सुरक्षा कर सकू।"
महावीर ने शान्त उत्तर दिया
"इन्द्र ! आत्म-साधकों के इतिहास में ऐसा न कभी हुआ, न होगा और न हो सकता है। मुक्ति किसी दूसरे के बल पर प्राप्त नहीं की जा सकती। साधक स्वयं अपना रक्षक होता है, वह किसी से संरक्षित होकर नहीं रहता। तुम चिन्ता न करो, मेरे लिए सुख-दुःख समान ही हैं।" ____ महावीर के इस महत् समभाव और अगाध धर्य पर विचार करता हुआ इन्द्र उन्हें नमन कर लौट गया। .
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