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वह विषधर | ४७ उनके जीवन में जो अभय, अद्वेष तथा अखेद था, उसका परिचय वे उस दृष्टिविष सर्प को भी करा देना चाहते थे।
उस सर्प की बाँबी के सम्मुख पहुँचकर भगवान ध्यानस्थ खड़े रह गये । सर्प ने देखा और कुछ समय तक तो उसका विस्मय ही नहीं गया- 'यह साहस ? मैं साक्षात् मृत्यु हूँ। मेरे सामने इस प्रकार आकर खड़ा हो जाने वाला यह कौन ? कौन है, यह ?' . ____ वह अभी कुछ जान न सका। क्रोधित हो उठा। भयंकर फुफकार उसने छोड़ी और देखने लगा कि जो व्यक्ति ऐसा दुस्साहस करके उसके सामने आया था वह भस्म हो गया कि नहीं?
किन्तु उसने देखा-वह अद्भुत अभय व्यक्ति वैसा ही प्रशान्त रहकर सामने खड़ा था। ___ क्रोध और अपनी पराजय की अनुभूति से वह ऐंठने लगा। तड़पकर उसने अपना फन उठाया और प्रभु के चरणों में भीषण दंश किया। किन्तु कुछ भी न हुआ। प्रभु की वही शान्त और प्रेममूर्ति सामने खड़ी दया और करुणा की अमृत वर्षा करती दिखाई दी। -- चण्डकौशिक आज अपने इस जीवन में पहली बार पराजित हुआ। उसने आज तक देखे थे उसकी दृष्टि के सामने पड़कर मृत्यु के भय से थर-थर काँपते हुए मनुष्य । किन्तु आज वह जिस मनुष्य को देख रहा था वह तो
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